चित्र नहीं, भाव रचते हैं पंकज वर्मा

पंकज कला की दुनिया में एक ऐसा उभरता सितारा है जिसके चित्रों में कहीं करुणा है तो कहीं साहस, संघर्ष और मानवता



चित्रकार पंकज वर्मा 



अराधना पांडेय (लेखिका)


(पंकज वर्मा कला की दुनिया में एक ऐसा उभरता सितारा है जिसके चित्रों में कहीं करुणा है तो कहीं साहस, संघर्ष और मानवता। इनके चित्रों की भाषा ऐसी है जिन्हें प्रस्तुत करने का सलीका बहुत कम लोगों को आता है। जिन संवेगों को अनुभवी चित्रकार आसानी से नहीं पकड़ पाते उसमें पंकज आसानी से सार्थकता तलाश लेते हैं। ऐसी सार्थकता जो समाज को ढेर सारी आस्था, खुली दृष्टि, गहरी संवेदना और आगे बढ़ने का साहस दे सके।


झारखंड के बोकारो के चित्रकार पंकज वर्मा, को दो गोल्ड मेडल भी मिल चुका है। बेहद गरीबी में पले-बढ़े पंकज अपने चित्रोंमें जीवन के किसी एक पक्ष को हंगामे की शक्ल में उतारना नहीं चाहते। वो गहराई से महसूस करने वाली ऐसी आकृतियां बनाते जिसमें बनारस पढ़ा जा सकता है और बोकारो भी। वो कहते हैं, -'मैं कोई स्पेसिफिक थीम लेकर नहीं चलना चाहता। मुझे जो पसंद है वही रच रहा हूं। चाहे वह अंदर से महसूस की गई चीज हो या फिर देखने के बाद प्रेरित होकर बनाई गई।'




पंकज के चित्रों में सिर्फ रंगों की रयात्मकता और भावों की गहराई ही नहीं, माहौल भी है। लय के साथ गायिकी भी है। पंकज के कई चित्र लोकप्रिय हुए हैं। चर्चित कृति मिशन जेनरेशन, माई रेसिंग बाइक, लेंडर, हैक्ड फ्रीडम में पंकज ने यह दर्शाने की कोशिश की है कि जब आदमी टूटता है तो कई साल पीछे सरक जाता है। इस कलाकार ने समाज, धर्म और सांप्रदायिक संघर्ष की विभीषिका के साथ यथार्थ को भी रचा है। इनके चित्रों में समरसता है, सजगता है, रोचकता है और कुतूहल की प्रवृत्ति भी है, जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का द्वार खोलती है।


पंकज ने गतिहीन यथास्थिति के वर्चस्व के खिलाफ एक गहरी दृष्टि पेश की है। इनका मानना है कि कला वो है जो अनुभूति को व्यक्त कर सके। अनुभूति जीवन से मिलती है। जीवन, जगत, जड़-चेतन, सभी में कलाकार को एक मानवीय संदेश सुनाई देता है।



गरीबी भी नहीं रोक सकी उनका हौसला


आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं लोगों के लिए एक प्रेरणा हैं पंकज वर्मा। आर्थिक तंगी से परेशान होकर भी इन्होंने अपने इरादों को टूटने नहीं दिया। आर्थिक तंगी के कारण लगातार 4 साल तक पढ़ाई छोड़ना पड़ा लेकिन इन्होंने हार नहीं मानी और फिर से पढ़ाई शुरू किए और कामयाबी हासिल किए।


 पंकज वर्मा बोकारो झारखंड के रहने वाले हैं लगभग 12 वर्ष की उम्र में ही इन्होंने कला शुरू कर दी थी। गांव के एक मंदिर को पेंट कर रहे थे। बड़ी-बड़ी दीवारों को इतने छोटे बालक को पेंट करते देख गांव वाले बहुत चकित थे। आस-पास के गांव में बहुत चर्चा होने लगी और यहीं से शुरू हुई एक व्यावसायिक जिंदगी। उस समय जब काम शुरू किए थे तो ट्रस्ट  वाले 50 रुपए रोज देते थे।  फिर आस-पास के गांव में भी काम करने लगे। काम के साथ साथ पढ़ाई भी चल रही थी।



हालांकि इन सब कामों की वजह से इनकी पढ़ाई हमेशा बाधित होती रही। छोटे काम करते करते झारखंड की नामी गिरामी कंपनियों से इनका परिचय हुआ और उनका विज्ञापन का काम करने लगे। धूप में 6 घंटे 7 घंटे काम करते थे। फिर एक दिन अनुभव हुआ कि इस तरह जिंदगी नहीं चल सकती। फिर इन्होंने सोचा कि पढ़ाई फिर से शुरू करेंगे। और फिर काम छोड़कर कर इंटरमीडिएट में एडमिशन ले लिए। 2011 में पास होने के बाद कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करें। इन्होंने यह सोच तो लिया था कलाकार बनूंगा लेकिन इस कोर्स के बारे में कोई जानकारी ही नहीं थी।


पंकज ने बताया कि बीएचयू में एडमिशन लेना एक बहुत ही रोमांचक घटना है एक  इंटरव्यू देकर लौट रहे थे और इनकी आदत में शुमार था कि यह स्केच बुक लेकर स्केच करते रहते थे। ट्रेन में एक पंजाबी आदमी ने इनका स्केच देखा और पूछा किस कॉलेज में पढ़ते हो जब इन्होंने कहा कि ऐसे ही शौक से करते हैं तो उसने इस कोर्स के बारे में बताया और कहा इसमें पढ़ाई कर लो इसमें अधिक संभावनाएं हैं बहुत आगे जा सकते हो।


अगले दिन ही लास्ट डेट था बीएचयू के एंट्रेंस फॉर्म का। उसी दिन उसी व्यक्ति ने इन का फॉर्म भरा। और इन्होंने बीएचयू का एंट्रेंस एग्जाम पास कर लिया । शुक्रवार की शाम को क्लास के बाद यह बोकारो चले जाते थे वहां 2 दिन  काम करते थे फिर रविवार को शाम को वापस आ जाते थे।



बीएचयू के कला विभाग के प्रोफेसर प्रणाम सिंह ने कहा पंकज वर्मा की पेंटिंग पूरे कला विभाग में सबसे ज्यादा अच्छी है  बहुत कम समय में ही इन्होंने बहुत तरक्की कर लिया है। इन्हें दो गोल्ड मेडल और एक कैश प्राइज भी मिल चुका है। इसके बाद इन्हें बहुत ऑफर आने लगे इस दौरान काम के लिए विदेशों में भी जाना हुआ।  एक अन्तर्राष्ट्रीय प्रर्दशनी हुई थी (द फेम) कोलकाता में उस प्रदर्शनी में इन्होंने अपनी एक पेंटिंग लगाई थी जिसे कोलकाता के नामी गिरामी कलाकारों ने बहुत सराहा। मालवीय जयंती के दिन इन्होंने मालवीय जी की एक पेंटिंग बनाई थी जिसको लोगों ने बहुत पसंद किया। इनके पिताजी एक रिक्शा चालक थे इसलिए इनकी सबसे फेवरेट पेंटिंग एक रिक्शे की पेंटिंग है ।