बनारस के किसानों ने कहा-हाय रे कोरोना! तू घोर कलयुग है क्या?
भैंस के आगे फीका हुआ गाय का दूध, कारोबारियों की बढ़ गईं मुश्किलें
विजय विनीत (vijay vineet)
वाराणसी। कोरोना संकट ने किसानों की कमर तोड़ दी है। हाल ये है कि दूध बोतलबंद पानी से भी सस्ता बिक रहा है। गाय के दूध की कीमत इतनी कम हो गई है जितनी दो दशक पहले थी। दाम 15-16 रुपये लीटर पर पहुंच गया है। बाजार में बोतल बंद पानी का दाम इससे भी ज्यादा है।
करीब 38 लाख की आबादी वाले बनारस जिले में रोजाना आठ लाख लीटर दूध की खपत होती है। काशी में करीब साठ फीसदी दूध पूर्वांचल के ग्रामीण इलाकों से आता है। बनारस के ढाब का अर्थशास्त्र सब्जियों की खेती के अलावा दूध के दम पर चलता है। रमचंदीपुर के ग्राम प्रधान एवं पशुपालक राज कुमार यादव की उम्मीदों को लॉकडाउन ने बड़ा धक्का दिया है। वो कहते हैं, "कोरोना संकट से पहले तक गाय का दूध 30 से 32 रुपये प्रति लीटर बिक जाता था। लॉकडाउन के एक दो दिन बाद से कीमत एक दम से नीचे आ गई। अब दूध मुश्किल से 15-16 रुपये लीटर के भाव बिक रहा है।
लॉकडाउन की वजह से पूर्वांचल के दुग्ध उत्पादक किसानों पर तितरफा मार पड़ी है। एक तो उन्हें दूध की सही कीमत नहीं मिल रही, दूसरे-लागत बढ़ती जा रही और जो दूध हो भी रहा है उसे खरीदने वाला कोई नहीं है। बनारस शहर में गाय के दूध की सप्लाई करने वाले मुन्ना यादव के पास कई मवेशी हैं। लॉकडाउन से पहले वो खुद शहरों में जाकर दूध की सप्लाई करते थे, लेकिन अब उन्हें बांटना अथवा घी बनाना पड़ रहा है। फ्री में इसलिए बांट रहे हैं कि कीमत बहुत कम है। भैंस का जो दूध पहले 50-55 रुपये प्रति लीटर बेचते थे, वो अब 20-22 रुपये में बेचना पड़ रहा है, वह भी पूरा बिक नहीं पा रहा है।
जो आमदनी थी वह तो एक दम बंद हो गई, लेकिन खर्च कम नहीं हुआ है।"
बनारस के मोकलपुर के शोभनाथ, प्रभु यादव, गोबरहां के नन्दू यादव, जाल्हूपुर के गब्बर यादव, कुकुढ़ा के वीरेंद्र पाल, मुस्तफाबाद के रामेश्वर यादव, चितौना के राजेंद्र अब चारे की बढ़ती कीमत को लेकर परेशान हैं। वो कहते हैं, "250 रुपये वाली कुट्टी अब दोगुने दाम में मिल रही है। 50 किलो वाले दाने का जो रेट पहले 1,500-1,800 रुपये था वो अब 3,000 रुपये बोरी है। चोकर, चूनी खली सब 30 से 40 फीसदी महंगा हो गया है। एक तो दूध के खरीदार नहीं हैं और दूसरा, खर्च बढ़ता जा रहा है। शायद उनकी मुश्किलें सरकार तक नहीं पहुंच पा रही हैं।"
लॉकडाउन की वजह से सबसे ज्यादा नुकसान छोटे दूध उत्पादक किसानों को हो रहा है। बड़े दूध उत्पादक तो अपना दूध कॉपरेटिव सोसायटियों में दे रहे हैं, उनके लिए गाड़ियां आ रही हैं, लेकिन होटल, चाय की दुकान और घरों में दूध देने वाले किसानों को ज्यादा नुकसान उठाना पड़ रहा है।
चिरईगांव क्षेत्र के बड़े दूध उत्पादक दयाराम यादव का दुख यह है कि गर्मी में उत्पादन कम और दाम आधा हो गया है। खपत का आलम यह है कि बेचने के लिए दूधियों की चिरौरी करनी पड़ रही है। राम कृपाल यादव कहते हैं, "लॉकडाउन से कारोबार बंद है। मिठाई की दुकानें बंद हैं। छेना और पनीर का उत्पादन भी ठप है। दूध की डिमांड नहीं के बराबर है। दूसरी ओर, चारा, खली-चुनी, भूसा इतना महंगा हो गया है कि गुजर-बसर कर पाना कठिन हो गया है। दूध का कोई मोल ही नहीं रह गया है। डूबते जा रहे हैं कर्ज में। बस किसी तरह चल पा रही है घर-गृहस्थी।"
सड़कों पर फेंकना पड़ रहा दूध
वाराणसी। कृषि मंत्रालय की रपट पर गौर करें तो इंडिया में कुल दूध का 75 फीसदी उत्पादन लघु सीमांत और भूमिहीन किसान करते हैं। देश में करीब 10 करोड़ डेयरियां हैं। 50 करोड़ लोगों की आजीविका दुग्ध उत्पादन से ही चलती है। लॉकडाउन के बाद से देश के कई राज्यों से खबरें आ रही हैं कि किसानों को लाचारी में सड़कों पर दूध फेकना पड़ रहा है। लाक डाउन बढ़ने से अब दूध उत्पादन से जुड़े किसानों की चिंता और बढ़ गई है।