कोरोना संकटःः किसानों की आंखों में आंसुओं की धुंध

चालू है किसानों की फैक्ट्री, मगर कूड़े में फेंकी जा रही स्ट्रॉबेरी
पूर्वांचल के सब्जी उत्पादकों की कोई सुनने वाला नहीं, हर कोई बेहाल  
किसानों के माथे पर गहरी होती जा रहीं चिंता की लकीरें, ठप है कारोबार 



 


विजय विनीत (vijay vineet)


वाराणसी। प्रगतिशील किसान अनिल मौर्य के खेत स्ट्रॉबेरी से लदे हैं, लेकिन खरीदार नहीं हैं। गुलाबी फलों को कोई पूछने वाला नहीं। बस, उन्हें तोड़कर फेंका जा रहा है। कुछ खेत की नालियों में और कुछ कूड़े में। अनिल को कुछ सूझ ही नहीं रहा कि वो क्या करें? कैसे निकालें अपनी फसलों की लागत? कैसे पालें, अपने परिवार का पेट? 
अनिल मौर्य चंदौली जिले के धानापुर प्रखंड के नौली और सैयदराजा के मानिकपुर गांव में सब्जियों की खेती करते हैं। वो ताइवानी तरबूज और खरबूज भी उगाते हैं तो शिमला मिर्च, खीरा, टमाटर, भिंडी, बैगन और बींस भी। अबकी पहली बार स्ट्रॉबेरी की खेती की तो लुट गए। पहले बेमौसम की बारिश और ओलावृष्टि ने तबाह किया, बाद में रही-सही कसर लॉक डाउन ने पूरी कर दी। नतीजा-मानिकपुर और नौली गांव अब सब्जियों की कब्रगाह बन गए हैं। सब्जियां तोड़कर फेंकी जा रहीं हैं। कोई पूछने वाला नहीं है। खेतों में वीरानगी है। 
सब्जी उत्पादक अनिल मौर्य के पास अपनी जमीन नहीं है। लीज पर महंगी जमीनें ली हैं। वो कहते हैं, "प्रयोग के तौर पर इस साल उन्होंने स्ट्रॉबेरी की खेती की। पैदावार भी अच्छी हुई। पेड़ फलों से लद गए। बेचने का वक्त आया तो बारिश व ओलावृष्टि ने कहर बरपा दिया। बची-खुची कसर कोरोना के कहर ने पूरी कर दी। पहले की क्षति से उबरे भी नहीं, अब लॉक डाउन ने उनकी मुश्किलें बढ़ा दी हैं।"  



पूर्वांचल में लॉक डाउन की वजह से स्ट्रॉबेरी की खेती करने वाले किसान काफी मायूस नजर आ रहे हैं। इन किसानों की स्ट्रॉबेरी न मंडी में जा पा रही है और न ही बाजारों में बिक पा रही है। अनिल मौर्य कहते हैं, "कुछ सूझ ही नहीं रहा है। क्या करें? कैसे निकालें फसलों की लागत? स्ट्रॉबेरी को हमें तोड़कर कूड़े में डालना पड़ रहा है। अगर हम नहीं तोड़ेंगे तो प्लांट भी खराब हो जाएगा। इससे हमें और ज्यादा नुकसान होगा।" 
अनिल मौर्य के साथ बृजेश मौर्य और सुनील विश्राम भी सब्जियों की खेती में हाथ बंटाते हैं। बताते हैं, "उनका टमाटर और शिमला मिर्च पूर्वांचल और बिहार की कई मंडियों में जाता था। अब भाड़ा भी नहीं निकल पा रहा है। लॉकडाउन के चलते बिक्री बंद हो गई है। कुछ दिनों तक उन्होंने लोगों को फ्री बांटने की कोशिश की। और फिर सब्जी के कुछ खेतों को पशुओं से चरवा दिया।"



वाराणसी शहर में टमाटर और शिमला मिर्च 40 से 60 रुपये किलो बिक रहा है। मिर्च की हालत तो और भी ज्यादा खराब है। थोक में हरी मिर्च पांच से सात रुपये प्रति किग्रा की दर बिक रही है। मंडियों में इतना ही रेट  टमाटर का भी है। बृजेश बताते हैं कि खरीदार नहीं मिल रहे हैं। नुकसान का गुणा-भाग करें तो लॉकडाउन के एक महीने में उन्हें करीब पांच लाख का नुकसान हो चुका है। गनीमत रही कि कुछ सब्जियां लाक डाउन से पहले अच्छे रेट में बिक गईं। 
कोरोना वायरस से लड़ते भारत में लॉकडाउन के दौरान सब्जी और फल को जरूरी चीजों की सूची में शामिल किया गया है। मगर पुलिस की सख्ती और प्रशासन द्वारा स्पष्ट गाइड लाइन जारी न किए जाने से किसानों का मंडी तक पहुंच पाना कठिन सा हो गया है। 


मीरजापुर के मेड़ियां गांव के प्रगतिशील किसान पप्पू सिंह की मिर्च की समूची खेती बारिश में डूब गई। बाद में खीरा उगाया तो कोई चार रुपये किलो के भाव खरीदने के लिए तैयार नहीं हुआ। लाक डाउन में सख्ती बरती गई तो उन्हें घरों में कैद होना पड़ा। जो फसल खेतों में थी, उसे घड़रोजों ने अपना निवाला बना लिया। पप्पू कहते हैं, "मार्च की बारिश से सब्जी उत्पादकों को जो नुकसान हुआ था उसकी भरपाई हुई ही नहीं। कुछ बचा तो वो लॉकडाउन में चला गया। किसानों के सामने सबसे बड़ी दिक्कत ट्रांसपोर्टेशन की है। मजदूर भी नहीं मिल रहे।" बनारस के शाहंशाहपुर और बजहां में मिर्च की खेती करने वाले किसान खून के आंसू रो रहे हैं। मीरजापुर के कटेरवां और बगहां के किसानों की दारुण दास्तां भी कुछ ऐसी ही है। 
पूर्वांचल में बेटर लाइफ गठबंधन स्कीम ने सब्जी किसानों को काफी राहत दी है, लेकिन उन किसानों का क्या करें, जिनकी फसल पूरी तरह बर्बाद हो चुकी है? बनारस के ऊंचगांव के हरिलाल पटेल कहते हैं, "खीरा अब मवेशियों को खिलाया जा रहा है। लाचारी जो है। मंडियां सिर्फ सुबह के समय ही कुछ घंटों के लिए खुल रही हैं। साप्ताहिक बाजारों और सड़क किनारे लगने वाले हाट बंद होने से टमाटर, हरी मिर्च, गोभी, शिमला मिर्च, धनिया, कद्दू-लौकी, खीरा जैसी सब्जियां और फलों की खेती करने वालों को भारी नुकसान हुआ है।" 



बनारस के अराजीलाइन, चिरईगांव और बड़ागांव प्रखंड में बड़े पैमाने पर सब्जियों की खेती होती है। इसी तरह गाजीपुर के भांवरकोल और शेरपुर का इलाका भी मशहूर है। मीरजापुर व सोनभद्र के टमाटर पहले पड़ोसी देशों में जाता था। अब हालात बेहद भयावह हो गये हैं। बिचौलियों पर प्रशासन का जोर नहीं है। यह हाल तब है जब पूर्वांचल के सभी बाजारों में फुटकर में सब्जियां कई गुना महंगी बिक रही हैं। लॉकडाउन में सब्जी किसान और ग्राहकों के बीच रेट का अंतर कितना है? मीरजापुर के किसान पप्पू सिंह बताते हैं, "सब्जी मंडियों में कारोबारी माल खरीदते हैं और फिर वो फुटकर वेंडरों को बेचते हैं। किसान से खाने वाले तक जो रेट पहुंचता है वही हमारी असली त्रासदी है।"
बनारस के नकईपुर के किसान घनश्याम पटेल, मीरजापुर के मिसिरपुरा के राजेश सिंह, खानपुर के सूर्यकांत सिंह, बसारतपुर के कल्पनाथ पाल, मठिया के संजय सिंह भी बड़े पैमाने पर सब्जियों की खेती करते हैं। लाक डाउन में उनकी लागत ही डूब गई है। किसान डरे हुए हैं कि अगर तीन मई के बाद लॉक डाउन नहीं खुला तो कुछ बचेगा भी नहीं? पिछले साल 50 रुपये किलो मिर्च का रेट था, इस बार सात-आठ रुपये किलो के भाव कोई नहीं पूछ रहा। खरीदार ही नहीं आ रहे। बनारस की मिर्च खाड़ी देशों में जाती थी, लेकिन अब किसान बेहाल हैं।



सरकार ने किसानों को थोड़ी राहत दी है, लेकिन असल दिक्कत मंडियों तक सब्जियों को पहुंचाने की है। बायर क्राप के प्रबंधक एपी शाही कहते हैं, " सब्जियों की सप्लाई के लिए वो किसानों को छोटे माल वाहन मुहैया कराने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन तादाद इतनी ज्यादा है कि सप्लाई चेन टूटती जा रही है। लाक डाउन की वजह से अब मजदूर भी नहीं मिल रहे हैं। ट्रक वाले मनमाना किराया वसूल रहे हैं। कारण-वो जहां जा रहे हैं, वहां उन्हें वापसी का भाड़ा नहीं मिल रहा है। शहर तक कम माल आने का मतलब सब्जी किसानों का नुकसान है। किसान सब्जियों को ज्यादा दिनों तक खेत में रोक नहीं सकते। मजबूरी में औने-पौने दाम पर बेचना पड़ रहा है।" शाही बात को आगे जोड़ते हुए कहते हैं, "लॉकडाउन के दौरान कई चीजें ऐसे हुई हैं जिससे मुझे लगता है, आने वाले समय में नई व्यवस्था शुरू हो सकती है। जैसे ट्रांसपोर्टेशन और कोल्ड चेन। अगर कोल्ड चेन सही होती तो किसानों को ज्यादा दिक्कतें नहीं आतीं।"