विजय विनीत की खास रिपोर्ट
बनारसी पान (banarasi paan)का बखान सिर्फ धार्मिक ग्रंथों में ही नहीं, फिल्मों और भोजपुरी गानों में भी छाया रहता है। खइके पान बनारस वाला...गाने की धुन पर सिने स्टार अमिताभ बच्चन का ठुमका आज भी लोगों को जोश से भर देता है। समूची दुनिया जानती है कि काशी की शान है, बनारसी पान। नेता हों या अभिनेता। सभी इसके दीवाने हैं। बनारस में पान का लक्मा घुलाने वाले किसी भी शख्स से बात कीजिए। हर सवाल का मिलेगा सटीक जवाब। सियासत पर बात करेंगे तो ठेंठ बनारसी अंदाज में ऐसी समीक्षा बूंकेगा कि आप भौचक्के रह जाएंगे। बनारस में पान की दुकानों पर देश भर के नेता-अभिनेता दस्तक देते रहे हैं। चाहे बलराज साहनी रहे हों या फिर राजकपूर। देवानंद, मीना कुमारी, अमिताभ बच्चन, सलमान खान, शाहरूख खान, अमिर खान, जान्हवी कपूर से लगायत माधुरी दीक्षित तक बनारसी पान का दीवाना रही हैं। पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी बनारसी पान के शौकीन थे। अटल बिहारी वाजपेयी और लालू यादव की तो बात मत पूछिए। वो जब भी बनारस आए, पहली डिमांड बनारसी पान की ही की। मुलायम सिंह यादव भी बनारसी पान का लुक्मा घुलाने का शौक नहीं छोड़ पाते। दुर्योग देखिए। काशी में पान का कारोबार अब संकट में है। सियासत के खेल में बनारसी पान की लाली क्यों फीकी पड़ गई है और उसका स्वाद कसैला हो गया है।
बनारस फकत गलियों, मंदिरों, गंगा घाटों और सीढ़ियों का शहर नहीं है। इस शहर को बनारसी साड़ी के लिए ही नहीं जाना जाता। बनारस में एक और चीज है जो इस शहर को दुनिया के दूसरे शहरों से जुदा करती है और वो है बनारसी पान (banarasi paan)। इसके कारोबार का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि काशी से इसकी आपूर्ति समूचे पूर्वांचल और देश के कई शहरों तक होती है।
बनारस में पान पैदा नहीं होता। चंद लोग खेती करते हैं, लेकिन सिर्फ नाम के लिए। यहां पान की आपूर्ति ओडिशा, बिहार और बंगाल से होती है। फिर पान के हरे पत्तों को लघु उद्योग की तर्ज पर ईश्वरगंगी और औरंगाबाद इलाके के छोटे व्यापारी अपने घरों पर प्रोसेस करके पीले-सफेद यानी बनारसी पान की शक्ल में ढालते हैं। ऐसा करने वाले लगभग डेढ़ हज़ार व्यापारी बनारस के पान दरीबा मंडी में आकर पान बेचते हैं। पान दरीबा पूर्वांचल की सबसे बड़ी पान मंडी है।
पान व्यवसाय में लगे श्री बरई समाज काशी के अध्यक्ष मुन्ना चौरसिया कहते हैं कि सरकार हमेशा बनारसी साड़ी उद्योग पर जोर देती है। सियासतदानों ने बनारस के पान व्यवसाय पर कभी ध्यान ही दिया। इनकी उपेक्षा से चौरसिया समाज के लोग दूसरे व्यापार की ओर तेजी से पलायन करते जा रहे हैं। यही वजह है कि आपूर्ति के अनुसार पान की खपत नहीं हो पा रही है। हाल के सालों में बनारसी पान का व्यवसाय करीब 30 से 35 फीसदी तक घट गया है। वो कहते हैं कि पहले बनारस की पान मंडी में हफ़्ते में 15-16 ट्रक आते थे। तकरीबन 65 से 70 लाख रुपये के पान की आपूर्ति ओडिशा, बिहार और बंगाल से होती थी। अब तो आठ-दस ट्रक पान ही आ पाता है। गर्मी के दिनों में स्थिति और भी खराब हो जाती है। इस सीजन में धंधा आधा हो जाता है।
मुन्ना चौरसिया यह भी कहते हैं कि बनारस के आधे से ज्यादा नेता पनखौव्वा हैं। जो पान नहीं खाते, उन्हें छोड़ दीजिए, मगर जो इसके शौकीन हैं उन्हें भी पान को बढ़ावा देने की फुर्सत नहीं है। पान की खेती के लिए बनारस का मौसम अनुकूल है। फिर भी पान के शौकीन मंत्रियों, सांसदों और विधायकों ने जिले में इसकी खेती की मुकम्मल योजना नहीं बनवाई। वह यह भी कहते हैं कि बनारस के सांसद नरेंद्र मोदी पीएम बने तो लगा कि उनके भाग्य फिर जाएंगे। लेकिन कुछ भी नहीं बदला। नोटबंदी और जीएसटी की मार से धंधा जरूर चौपट हो गया। इस व्यवसाय की ओर न सरकार ने ध्यान दिया और न ही नौकरशाही ने। यह धंधा तभी जिंदा रह पाएगा, जब सरकार ब्याजमुक्त कर्ज की व्यवस्था करेगी।
पूरी ज़िंदगी पान बेचकर अपनी और अपने परिवार की आजीविका चलाने वाले 61 वर्षीय विजय चौरसिया बताते हैं कि गर्मी के दिनों में पान तेजी से सड़ने लगता है। इस वजह से पानदरीबा मंडी में बहुत कम व्यापारी आ रहे हैं। रोज की कमाई आधी हो गई है। कई बार तो बोहनी के लिए दोपहर तक ग्राहकों का इंतजार करना पड़ता है। पान व्यापारी दूसरे रोज़गार की तरफ जा रहे हैं और जो अभी भी मंडी में हैं वो खाली बैठे हुए हैं।
बनारस के पान दरीबा में पान के थोक व्यापारी दिनेश बताते हैं कि वो इस मंडी से पान खरीदकर लखनऊ, दिल्ली, गोरखपुर, बस्ती और मऊ तक सप्लाई करते थे, लेकिन सरकार की उपेक्षा के चलते पान की सप्लाई नहीं के बराबर हो पा रही है। पान दरीबा में मंदी की चिंता वहां मुसहर समुदाय के उन लोगों को भी सता रही है जो पत्ता बेचकर अपनी जिंदगी चलाते हैं। सड़क के किनारे पत्ता बेचने वाली बिल्लो देवी कहती हैं कि अब परिवार का पेट भर पाना कठिन है। माल, न बांधने को मिल रहा है और न ही ढोने को। दिन भर में सौ रुपये की कमाई नहीं हो पाती है।
ईश्वरगंगी और औरंगाबाद की संकरी गलियों में पकता है पान
बनारस के ईश्वरगंगी और औरंगाबाद की संकरी गलियों में पककर पान का रंग जब सफेद हो जाता है, तब बनारसी हो जाता है। बनारसी पान खाया नहीं जाता। घुलाया जाता है। यूं कह सकते हैं कि मुंह में जाते ही घुल जाता है। इसकी लज्जत अनूठी होती है। पान को पकाने की कला सिर्फ बनारस का बरई समाज ही जानता है। यह हुनर सिर्फ बनारसियों को आता है। बरई समाज के लोग बताते हैं कि घर की बेटियां भी पान पकाने की कला में दक्ष हैं। शादी के बाद ससुराल में ये जहां भी गईं, उन्होंने पान पकाने का हुनर नहीं छोड़ा। ससुराल में ही पान पकाने के कारोबार को फैला लिया। हाल के सालों में इनका हुनर तेजी से हस्तांतरित हुआ और अब कई शहरों में पान पकाने की कला शिखर छूने लगी है। अलबत्ता अब बनारस पीछ छूटने लगा है। दीगर बात है कि बनारस के एन्वायरमेंट में जो पान पकता है उसका मुकाबला कोई नहीं कर सकता।
खत्म हो गई बनारस में पान की खेती
बनारस में पान की खेती गिने-चुने किसान ही करते हैं। एक जमाने में बनारस के कई गांवों में लोगों के जीवन का आधार पान ही हुआ करता था। भारत में सर्वाधिक पान की खेती बनारस में ही होती थी। यहां से पाकिस्तान, नेपाल से लगायत चीन तक पान भेजा जाता था। बरई समाज के जीविकोपार्जन का जरिया पान की बागवानी हुआ करती थी। समय बदला, लोग बदल गए। खेती बदल गई और लोग मंदिरों में चढ़ाने के लिए गेंदा-धतूर उगाने लगे। नई पीढ़ी ने तो इस धंधे से तौबा ही कर लिया। पान की खेती के लिए बनारस के अधिसंख्य गांवों में बने तालाबों के भीटों (बरेजा) का नामो-निशान मिटता जा रहा है। बरई समाज इसका मुख्य कारण सरकार की उदासीनता मानता है।
बनारस और आसपास के जनपदों में खत्म हो रही पान की खेती को नया जीवन देने के लिए अब शासन ने अनुदान का मानक बदला है। योगी सरकार पान के किसानों को 50 फीसदी तक अनुदान देगी। किसान अब चार बिस्वे में इसकी खेती करके अनुदान ले सकते हैं। पहले सिर्फ 15 बिस्वा भूमि से कम पर अनुदान का प्राविधान नहीं था। चार बिस्वा में पान की खेती करने पर करीब 50,453 रुपये खर्च आता है। इसमें 25,227 रुपये अनुदान अब सरकार देगी। बनारस में पान की खेती को बढ़ावा देने के लिए बनारस को पहली बार सात लाख 56 हजार 800 रुपये का बजट मिला है।
बनारस के बच्छांव, मीरजापुर व जौनपुर में देसी पान की खेती होती है। पिछली सरकारों की उदासीनता से किसानों ने पान की खेती बंद कर दी थी। सिर्फ बच्छांव में कुछ लोग पान की खेती करते हैं। जिला उद्यान अधिकारी संदीप गुप्ता कहते हैं कि अनुदान मिलेगा तो किसान इसकी खेती की ओर जरूर उन्मुख होंगे। फिलहाल बनारस के सात नए किसानों ने पान की खेती के लिए पंजीकरण कराया है।
फायर पान के शौकीन हैं तो कचौड़ी गली जाइए!
बनारस में पान खाना सिर्फ शौक नहीं, एक परंपरा है। इस शहर में कई ऐसी दुकानें हैं जो आजादी के पहले की है। विश्वनाथ गली में दीपक ताम्बूल की दुकान 140 वर्ष पुरानी है। दुर्गा प्रसाद चौरसिया के दादा ने इस दुकान को खोला था। यहां हर तरह के पान मिलते हैं। मगही पान की खास डिमांड रहती है।
बनारस की कचौड़ी गली अगर कचौड़ी के लिए जानी जाती है, तो यह पान के लिए भी मशहूर है। इस गली में पान की एक ऐसी दुकान है जहां फायर ब्रांड का पान खाने के लिए शहर भर के दीवाने पहुंचते हैं। यहां गोपाल पान भंडार पर बिकता है आग वाला पान। मतलब पान में आग लगाकर ग्राहकों के मुंह में डाल दिया जाता है। इस पान को खाने पर मुंह नहीं जलता। लेकिन फायर पान गोपल के हाथ से खाना पड़ता है। लहरतारा निवासी गोपालजी केसरी यहां 40 साल से ब्रांडेड पान बेचते हैं। इनके यहां स्ट्राबेरी पान, चॉकलेट पान, पान वाला लड़डू, बर्फी पान, आइस पान के अलावा कीवी और बटर स्कॉच पान काफी फेमस है। फायर पान कैसे लगते हैं और उसमें क्या होता है? पूछने पर उन्होंने क्लू देने से साफ मना कर दिया। दावा किया कि फायर पान से कभी मुंह नहीं जल सकता है।
नदेसर में सतीश ताम्बूल नामक दुकान प्रसिद्ध है। हाल ही में जब हैरी मेट सेजल के प्रमोशन के लिए शाहरूख खान आए थे तब उन्होंने यहां पान खाया था। यह दुकान 70 साल पुरानी है। लोकप्रियता को भुनाने के लिए सतीश ने मीठे पान को नया नाम दिया है शाहरुख खान पान। एक बीड़ा पान के लिए वो 35 रुपये वसूलते हैं।
नदेसर में कृष्णा पान भंडार भी सौ साल पुराना है। यहां तरह-तरह का पान बिकता है। छोटी पत्ती वाले पान की डिमांड ज्यादा है। यहां पांच से पचास रुपये तक पान मिलता है। खासियत यह है कि इस दुकान पर बाजार के जर्दे का प्रयोग कतई नहीं होता। जर्दा घर पर ही बनाया जाता है, जो कैंसर जैसी बीमारी का खतरा काफी कम कर देता है।
रथयात्रा इलाके में जाएंगे तो कुबेर कॉम्प्लेक्स के सामने गली में केशव तांबूल भंडार पर पान के दीवानों की लाइन दिखेगी। करीब 30 साल पुरानी दुकान की लंका में भी एक शाखा है। मघई, जगन्नाथ पान हो या फिर देसी व सांची। हर सीजन में मनपसंद पान का लुफ्त उठाया जा सकता है। यहां स्पेशल पान 35 रुपये बीड़ा है। सादा पान दस रुपये और तम्बाकू का पान तीन से दस रुपये में मिल जाता है।
गोदौलिया के जाने वाले गामा पान भंडार पर शहर भर के रसूखदार लाइन लगाने से नहीं चूकते। लगभग 70 वर्ष पुरानी है यह दुकान। यहां पान की स्पेशल गिल्लौरी सबसे ज्यादा बिकती है। मैदागिन, लहुराबीर, तेलियाबाग से लगायत वरुणापार इलाके में पान की तमाम दुकानें हैं। हर दस कदम पर खुली हैं दुकानें। कहीं भी खड़े होंगे तो पान की दुकानें जरूर दिख जाएंगी। सिर्फ बनारस ही ऐसा शहर है जहां पान के दुकानों की अपनी मर्यादा होती है। आप न पानवाड़ी के बर्तन को छू सकते हैं और न ही उसकी चौकी पर हाथ रख सकते हैं। आप चाहे जितने भी रसूखदार क्यों न हों, पान के लिए लाइन तो लगानी ही पड़ेगी।
बनारस में मशहूर हैं पान की अड़ियां
बनारस की गलियों से लगायत सड़कों तक जितने भी पान की दुकान हैं सभी की अपनी-अपनी अड़ी है, और जो जिस अड़ी पर बैठता है उसे छोड़ दूसरी अड़ी का दामन नहीं थाम सकता। ये बनारसी पनवड़ियों की शायद रवायत है।
बनारसी पनखौव्वा राधे मोहन कहते हैं कि अब ई पान में उ बात नाहीं रहल। पईसा कमाये के चक्कर में सबही पानवाड़ी मिलावट करत हउवन। कत्था में मिलावट हव। चूना भी सही नाही। मुंह क लज्जत त बिगड़बे करी। नाम न छापने की शर्त पर एक पान विक्रेता ने बताया कि मंहगाई के चलते मिलावट का सहारा लेना पड़ रहा है। यह सच है कि हम चूना को भी चूना लगा रहे हैं। यह ठीक नहीं, मगर पेट भी तो पालना है।
मीठा पान सेहत के लिए लाभकारी
वाराणसी के पंडित दीनदयाल उपाध्याय राजकीय अस्पताल के डायटिशियन डा।रमेश मिश्रा कहते हैं कि पान में वाष्पशील तेलों के अतिरिक्त अमीनो अम्ल, कार्वोहाड्रेट और कुछ विटामिन प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। पान के औषधीय गुणों का वर्णन चरक संहिता में भी किया गया है। ग्रामीण अंचलों में पान के पत्तों का प्रयोग लोग फोड़े-फूंसी के उपचार में भी करते हैं। यह औषधीय गुणों का खजाना है। बलगम हटाने, मुख शुद्धि, अपच, श्वांस संबंधी बीमारियों का निदान भी करता है पान। इसकी पत्तियों में विटामिन ए प्रचुर मात्रा में होता है। सुबह नाश्ते के बाद काली मिर्च के साथ पान का सेवन करने पर अच्छी भूख लगती है। सोने से थोड़ा पहले पान को नमक और अजवायन के साथ मुंह में रखने से नींद अच्छी आती है।
पान के पत्तों का धार्मिक महत्व
पान शुभ और संपन्नता का प्रतीक है यही वजह है कि पान हिन्दू धर्म में काफी पवित्र माना जाता है। स्कंद पुराण के मुताबिक देवताओं द्वारा समुद्र मंथन के समय पान के पत्ते का प्रयोग किया गया था। यही वजह है कि पूजा में पान के पत्ते के इस्तेमाल का विशेष महत्व है। हिन्दु धर्म में देवताओं को स्नान कराते समय भी पान के पत्ते का ही प्रयोग किया जाता है। हम आपकों पान के पत्तों के कुछ प्रयोग बता रहे है जिनको करके आप सुख, समृद्धि प्राप्त कर सकते है।
-पान का दान करने से मनुष्य पापों से छुटकारा पाता है, जबकि पान खाने से पाप होता है।
-पान शुभ और संपन्नता का प्रतीक है यही वजह है कि पान हिन्दू धर्म में काफी पवित्र माना जाता है।
-पान का पत्ता नकारात्मक उर्जा को दूर करने वाला और सकारात्मक उर्जा को बढाने वाला भी माना जाता है इसलिए नजर लगे व्यक्ति को पान में गुलाब की सात पंखुड़ियां रखकर खिलाए।
-भगवान शिव को पान अर्पित करने से व्यक्ति का मनोकामना पूर्ण होती है।
-यदि आपको ऐसा लगता है कि किसी ने तांत्रिक क्रिया करके आपकी दुकान बांध दी है तो आप शनिवार प्रात: पांच पीपल के पत्ते और 8 पान के साबूत डंडीदार पत्ते लेकर उन्हें एक ही धागे में पिरोकर दुकान में पूर्व की ओर बांध दें। ऐसा कम से कम पांच शनिवार करें। पुराने पत्तों को किसी नदी या कुएं में प्रवाहित करे दें। इस उपाय से आपकी बिक्री बढ़ेगी।
-अगर व्यापार में परेशानी हो तो पान का दान करें इससे व्यक्ति के पापों से छुटकारा मिलता है।
-रविवार को एक पान का पत्ता घर से बाहर निकलेंगे तो आपके रूके हुए काम संपन्न होना शुरू हो जाएंगे और घर में बरकत ही बरकत बनी रहेगी।
-अगर आपके विवाह की बात चल रही है तो होने वाले जीवनसाथी को अपने प्रति आकर्षित करने के लिए तांबूल यानि पान के पत्ते की जड़ को घिसकर तिलक लगाएं। ऐसा करने से विवाह हेतु देखने आए लोग मोहित हो जाएंगे और आपका विवाह पक्का हो जाएगा।
*तम्बाकू सेहत के लिए हानिकारक है। इससे कर्क रोग होता है। हम तम्बाकूयुक्त किसी भी उत्पाद का समर्थन नहीं करते।