स्ट्राबेरी की खेती से अनिल हो गए मालामाल, खेतों को बनाया प्रयोगशाला

यूपी के चंदौली जिले में सब्जियों की खेती से अनिल मौर्य ने मचाई धूम



विजय विनीत 


वैज्ञानिक तकक से खेती का गुर सीखना हो तो युवा किसान अनिल मौर्य से मिलिए। ये ऐसे किसान हैं जिन्होंने अपनी खेतों को प्रयोगशाला बना दिया है। ऐसी प्रयोगशाला जहां एक ओर स्ट्राबेरी की फसल लहलहाती है तो दूसरी ओर, शिमला मिर्च, खीरा, टमाटर और ताइवानी तरबूज-खरबूज की। कोरोना संकट से उपजे लाक डाउन के बावजूद इनके हौसलों की उड़ान धीमी नहीं पड़ी है। अनिल ने यूपी के चंदौली जिले के मानिकपुर गांव में स्ट्राबेरी खेती से इस साल लाखों रुपये कमाए हैं। वो भी तब जब कोरोना का साया देश भर में किसानों को डंक मार रहा था।


युवा किसान अनिल मौर्य ने पहली बार बड़े पैमाने पर स्ट्राबेरी की खेती करके अनूठी मिसाल कायम की। लाक डाउन में देश के तमाम किसानों ने स्ट्राबेरी की खेतों को जोत दिया, या फिर सूख गईं, लेकिन अनिल मौर्य के खेतों में जाइए, आपको स्ट्राबेरी के फलों से लकदक दिखेंगे पौधे। अनिल मौर्य ने वैज्ञानिक ढंग से स्ट्राबेरी की खेती की है।


 


दरअसल, जज्बा हो तो युवा किसान अनिल मौर्य जैसा। चंदौली जिले के नौली गांव में कुछ साल पहले पेशगी पर जमीन लेकर इन्होंने  ताइवानी तरबूज और खरबूजे की खेती की खेती शुरू की और चंद सालों में लखपति बन गए। साथ ही चंदौली के उन किसानों के लिए आदर्श बन गए जो खेती से मुंह मोड़ने लगे थे। तरबूज की खेती में अनिल का हाथ बंटा रहे हैं इनके मित्र बृजेश मौर्य और सुनील विश्राम। दरअसल, सुनील का रुझान खेती की ओर तभी बढ़ा जब अनिल मौर्य ने उन्हें प्रोत्साहित किया। यूं तो सुनील पेशे से पत्रकार हैं और अब इन्हें प्रगतिशील किसान के रूप में जाना जाता है।


अनिल मौर्य की तरक्की की कहानी किसानों के प्रेरणापुंज बन गया है। इनके मित्र बृजेश मौर्य नौली गांव में खेती का सारा काम संभालते हैं। खुद अनिल फल और सब्जियों के विपणन का काम देखते हैं। अनिल और ब्रजेश काफी पुराने दोस्त हैं। यह दोस्ती उन दिनों से है जब वे एक बीमा कंपनी में एक साथ काम करते थे। इन युवाओं ने पहले हल की मूठ तक नहीं संभाली थी। जब बारिश और धूप में पसीना बहाना शुरू किया तो सबके आदर्श बन गए। एकलब्य कथा से प्रेरणा लेकर युवा किसानों ने नई तकनीक से खेती शुरू की तो सफलता इनके कदम चूमने लगी।



चंदौली के दोनों किसानों ने सबसे पहले ताइवानी खरबूजा मुस्कान की खेती शुरू की। इस खरबूजे ने इनके चेहरे पर मुस्कान ला दी। फूलों जैसी सुगंध, चीनी जैसी मिठास, गोल और सुडौल ताइवानी खरबूजे से इन्होंने खूब कमाई की। पिछले दो सालों से मल्चिंग तकनीक से ये तरबूज के साथ ही ताइवानी तरबूज की खेती कर रहे हैं।  अनिल मौर्य हर साल सैकड़ों कुंतल तरबूज और खरबूजा बाजार में बेचते हैं। लाखों कमाते हैं। चंदौली जिले में बड़े पैमाने पर इन्होंने शिमला मिर्च की खेती शुरू की उन्होंने खेत से बाजार तक धूम मचा दी। 



अनिल और बृजे श केजुनून की बदौलत अब धानापुर प्रखंड का नौली गांव जिले किसानों के लिए प्रयोगशाला बन गया है। जिस गांव में कोई व्यावसायिक खेती करने की हिम्मत तक नहीं जुटाता था, वहां अब खेती से दौलत बरसने लगी है। लोग अब अनिल मौर्य को एग्रीलीडर मानने लगे हैं। ये श्रमिकों के साथ खुद तपती धूप में काम करते हैं।


अनिल मौर्य बताते हैं कि रसीले और स्वादिष्ट ताइवानी तरबूज को चंदौली के किसान अपनी कमाई का उत्तम जरिया बना सकते हैं। मुस्कान को नदियों के किनारे अथवा बलुई दोमट मिट्टी में पानी की उपलब्धता के आधार पर मेड़ अथवा थालों में बोया जा सकता है। तरबूज की प्रचलित प्रजाति शुगर बेबी, दुर्गापुर केसर, एनएस 195 को ताइवानी तरबूज मात दे रहा है।



प्रगतिशील किसान बृजेश और अनिल की मेहनत का नतीजा है कि अब ये चंदौली के फार्मरों के ब्रांड एंबेस्डर बन गए हैं। अनिल मौर्य के खेतों में हमें मिले चंदौली के वरिष्ठ पत्रकार मुकेश मौर्य। अनिल मौर्य से सीख लेकर यूपी के पूर्वांचल इलाके के तमाम किसानों ने इजराइल तकनीक से फल और सब्जियों की व्यावसायिक खेती शुरू कर दी है। सभी किसान मोटा मुनाफा कमा रहे हैं। अनिल मौर्य ने तरक्की की जो अलख जगाई है, उससे किसानों व श्रमिकों का अंधेरा मिटा है। चंदौली का धानापुर इलाका तरक्की की नई रोशनी से जगमग हुआ है।